Sunday 13 November 2016

' स्थितप्रज्ञ'

पंचवटी में बैठकर आसमान से समय की याचना करता है, धरती को माँ कहकर अँगूठे से हल रेखाएं खींचता है। वह आदमी मुस्कान का व्यापार करता है, आँखों में सांप की उतरी हुई केंचुली लगाकर। ईश्वर उसे पुत्र कहने से नही घबराता अब, उसके पास प्रेम का झरना वसीयत में लिखा पड़ा हैं। 

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