Sunday 13 November 2016

राधा कृष्ण

दक्षिण अक्षौहिणी,
कुरुक्षेत्र।
प्रिय राधा,
मेरे प्रेम की लौह तत्व, मेरी स्वतन्त्रता की सूक्ष्म धूमकेतु।
कल से कुरुक्षेत्र में युद्ध रचने जा रहा हैं। और अर्जुन को देख कर लग रहा है, वो हताश होकर शस्त्र त्याग देगा कल युद्ध क्षेत्र में।
जानता हूँ गीत गाकर, गीता कहनी होगी। तटस्थता की प्रीत पढ़नी होगी कल।
अकेला नहीं कर पाउँगा यह सब। सो तुम्हे पत्र लिख कर बुला रहा हूँ। अट्ठारह दिन के लिए आ जाओं राधा।
तुमने ही कान्हा को कृष्ण बनाया है। सारा जीवन तुम्हारे सिखाये को पढता हूँ, बांचता हूँ। अटक जाता हूँ तो तुम्हे याद करके मुस्कुरा देता हूँ। इस बार फिर से तुम्हारी जरूरत आन पड़ी हैं।
पता है राधे! हताश मन की दरारे भरने के लिए स्वयं का हत मन भरा होना चाहिए पहले, प्रेम से। अर्जुन को उठाने से पहले मैं तो उठ जाऊँ पहले। तुम आ जाओं, सब ठीक होगा फिर।
तुमने सिखाया है प्रेम के रास्ते में सांख्य और निष्काम योग का दर्शन, तुमने बताया है धर्म की हानि में ईश्वर का आगमन, तुमने समझाया है मेरा योगेश्वर होना और श्री-विजय होने का सम्पूर्ण आत्मविश्वास।
गीता में तुम्हे कहूँगा प्रियम्। गीता तुम कहोगी, लो मैं निष्काम निष्कासित होकर फिर से तुम्हे सुपुर्द करता हूँ स्वयं को।
आ जाओं।
तुम्हारा और सब का
कृष्ण

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