Sunday 13 November 2016

" कान्हा ! तुम्हारी कोरों में पानी क्यों रहता है दिनभर आजकल ?"

" कान्हा ! तुम्हारी कोरों में पानी क्यों रहता है दिनभर आजकल ?"
- " प्रेम में पड़ा हुआ मनुष्य इतना तरल होने लगता है, कि भीतर का भाव पानी होकर रिसता है दिन भर। पेड़ से पत्ती गिरी नहीं कि दिया मन रोने, पैरों से उठती हुई धूल या दिये से मिटते हुए अँधेरे के दर्द से भी मन तरल-सरल-विरल होने के बहाने ढूँढता हैं। किसी ने कहा था एक बार, जब प्रेम होगा तो कुछ कह नहीं पाओगे। रो दोगे बिना कारण। इसलिए , दिनभर आँखों की कोरो में पानी भरा रहता हैं।
कल जब कुछ न सूझा तो इसी बात पर आँसू टपकने लगे। मैं देखता रहा निरन्तर, आंसुओं को गिरते और मन को उठते। लगा जैसे इसी तरह बह जाना है निरन्तर। राधा! मुझे प्रेम हो चला हैं। पानी आँखों की नियति है अब। "

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