कमर पर छाती बांध कर हम तीन लोग सफर पर निकले थे। हमने खुद से वादा किया था कि हमारी जान हथेली के रास्ते निकलेगी और जीभ तालु से चिपककर हमे रास्ता बताएगी।
चलते चलते हम एक कुटिया तक पहुँचे, लगा यही तक आना था बस। फिर हमने नाखूनों से तालाब खोदा, आँसुओ से गुलाब सींचे और ईश्वर को निमंत्रण पत्र लिखे; अपने पसीने के इत्र से।
ईश्वर ने बहाना बनाया कि वह नही आ सकता , अगले पखवाड़े तक। फिर हमने एक दूसरे पर कविताएँ बाँची। पहाड़ी पर चढ़कर राते और रास्ते नापे। और भेड़ो पर लिखे लोकगीत गुनगुनाए।
कई रातों तक सिलसिला चलता रहा, समां बंधता रहा, गीत चुकते रहे, तारे चुगते रहे हमारी यादों का अनाज। एक दिन चाँद से देवताओं की कन्या उतरी, उसने .........
आगे क्या हुआ! क्यों हम तीन लोग वहाँ आए, क्यों गीत गाए, क्यों देवताओं की बेटी ने पहाड़ की चट्टान पर लिखे गीत पढ़े। हम नही जानते। यह जान पाए , बस, की उन तीन दिनों में एक ही आदमी तीन लोग बनकर वहाँ था।
चलते चलते हम एक कुटिया तक पहुँचे, लगा यही तक आना था बस। फिर हमने नाखूनों से तालाब खोदा, आँसुओ से गुलाब सींचे और ईश्वर को निमंत्रण पत्र लिखे; अपने पसीने के इत्र से।
ईश्वर ने बहाना बनाया कि वह नही आ सकता , अगले पखवाड़े तक। फिर हमने एक दूसरे पर कविताएँ बाँची। पहाड़ी पर चढ़कर राते और रास्ते नापे। और भेड़ो पर लिखे लोकगीत गुनगुनाए।
कई रातों तक सिलसिला चलता रहा, समां बंधता रहा, गीत चुकते रहे, तारे चुगते रहे हमारी यादों का अनाज। एक दिन चाँद से देवताओं की कन्या उतरी, उसने .........
आगे क्या हुआ! क्यों हम तीन लोग वहाँ आए, क्यों गीत गाए, क्यों देवताओं की बेटी ने पहाड़ की चट्टान पर लिखे गीत पढ़े। हम नही जानते। यह जान पाए , बस, की उन तीन दिनों में एक ही आदमी तीन लोग बनकर वहाँ था।
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