Sunday 13 November 2016

'रौशनी'

देवताओं की सभा में हस्तक्षेप की तरह देवरानी दाखिल हुई। शिकायत पत्र लेकर। देवरानी ने कहा की सोते वक्त रोज छत से नमकीन पानी टपकता है उसके माथे पर। उसने सोने की जगह बदल कर भी देख ली, टपकना जारी हैं। छत नहीं, सारा स्वर्ग टपकता है रात्रि के हर प्रहर।
जाँच करवाई गई तो मालूम हुआ की स्वर्ग का चौकीदार रात को छत पर अलाव जला कर बैठता है। दिन में लिखी चिट्ठियाँ अलाव में एक एक कर जलाता है, जिनसे निकला नमकीन पानी छत को छेदता हुई देवरानी के माथे पर आ गिरता है।
देवताओं के राजा से देवरानी ने कहा कि उसे चौकीदार के घर की मिट्टी चाहिए। ताकि वो स्वर्ग की छत लीप सके और बची हुई मिट्टी से अपने माथे की दरारे भर सके।
पर उसे बताया गया की यह सम्भव नहीं है, चौकीदार का घर नर्क की आग में जलता है, देवताओ का वहाँ जाना असम्भव हैं।
देवरानी ने कहा , " मैं कल खाली कागज और कलम लेकर स्वर्ग की छत पर जाऊँगी, स्वर्ग के चौकीदार को दूँगी। सारी रात मशाल पकड़े खड़ी रहूँगी। ताकि वो चिट्ठियाँ लिखता रहे। उसे रौशनी की जरूरत है। मैं स्वर्ग नर्क की दहलीज से मशाल बनाकर उसके लिए रौशनी का इंतजाम करुँगी। वो स्वर्ग का चौकीदार हैं।

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