Sunday 13 November 2016

ईश्वर की नींद

जीवन और मृत्यु के बीच झूले घुटनों में लगी जंग को या तो ईश्वर हटाए या फिर बसंती ओढनी से झांकती ईश्वर की बेटी. प्रेम के मन्दिरों की घंटियाँ शहर छोड़ने के बाद भी कानों से बंधी हुई रहती हैं.दो और दो चार गणित की किताबों के पहले लेकिन ईश्वर की पुत्री की रफ कॉपी के आखरी पन्ने पर मिलते हैं.
जंग-बसंत-घंटियाँ-और रफ कॉपी जीवन के सबसे मासूम पलों की रोमिल आवाज हैं. जब जब सभ्यता पर आक्रमण के खतरे बढ़ेंगे, सांस्कृतिक संकट उछल कर कूद पड़ेंगे. आवारा मसीहाओं का एक दल ईश्वर की पुत्रियों के दुपट्टो को प्रेम के झरनों में धो कर जंगली आक के पास वाली झाड़ी में सुखाता मिलेगा. जंग टालने का, बसंत को न्यौता देने के,मन्दिरों में घंटियाँ कसने का यह शालीन प्रयास हैं.
ईश्वर की पुत्री अपनी रफ कॉपी में लिखती है सारी घटनाएँ और प्रेम के सरस पत्र, और मिटाती है वो सभ्यता,संस्कृति के माथे पर जमी हुई धूल. वह आवारा मसीहाओ के लोकगीतों को गुनगुनाती है रात भर.
इस तरह ईश्वर चैन की नींद सोता है.

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