Sunday 13 November 2016

' राधा! आज उमस है मौसम में'

गोकुल, मथुरा, वृन्दावन के मन्दिरों और आश्रमों में कृष्ण और राधा नही मिलती। यहाँ की मिट्टी और हवा में मिलते है दोनों। 
' राधा! आज उमस है मौसम में'
'कान्हा ! तुम्हारे पैरों को चूमने से हवा में नर्म भाप उड़ी थी कल शाम। उस पानी को बादलों ने लेने से इंकार कर दिया, धरती भी उसे छूना नहीं वरन् देखना चाहती थी। वही उमस तुम्हारी उंगलियो की पोरो पर आ बैठी है चुपके से। 
प्रेम का होना और मौसम का रोना एक नहीं है सखा, प्रेम के रोने से मौसम होता हैं। और मौसम के रोने से प्रेम होता हैं। 
असंख्य रोगों का निदान इस दवा से हो जायेगा, जब लोग मौसम की मासूमियत पर वातायन खोल देंगे। बाहरी उमस उन्हें लपेट लेगी धीरे धीरे। फिर बंगाल में गौरांग प्रभु नाच उठेंगे। गुजरात में रास झूम उठेगा। ये अटक से कटक के बीच फैली चादर हैं, जो तुम्हें उमस जैसी दिखती हैं। होठो से निकली साँझ की सरगम को तुम न समझ सकोगे, पूछ लिया करो। प्रेम मेरे हिस्से की व्याख्या है और तुम्हारे हिस्से का मौसम। समझे बुद्धू!'

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