Sunday 13 November 2016

'हवा किस ओर बह रही है कान्हा !''

'हवा किस ओर बह रही है कान्हा !''
-" हमारे प्रेम के गर्व से प्रेम के विश्वव्यापी होने की दिशा में राधे। जमुना का तट इस प्रेम का शालीन दृष्टा है, जामुन के पेड़ मुस्कुराते हुए मौन पथिक है। तुम इनसे पूछोगी तो बता नहीं पाएंगे, प्रेम का विस्तार। तुम्हे नदी तटों के किनारे की घास से पूछना होगा, पेड़ो की डाल पर बैठी चिड़िया के कान सूँघने होंगे।
हवा का बहाव और मन का भाव एक जैसा लगता हैं। फिर भी प्रेम की तरफ बढ़ चलने वाली हवा भाव के विरह को लांघ कर बढ़ जाती है। सो आत्मसमर्पण करते हुए भाव हवा की कैद में जकड़ जाते हैं।
पता है राधा! तुम पूछती हो तो लगता है हृदय पर जमी धूल को हथेली से बुहार रही हो। तुम प्रश्न पूछकर भी शिष्या नहीं रहती, और मैं उत्तर खोजकर भी गुरुत्व प्राप्त नही कर पाता। इसीलिए तुम शिष्या से सखी हो जाती हो। अब समझ भी लो की हवा किस ओर बह रही हैं, कभी तुम्हारी ओर, कभी मेरी ओर।
इस बीच हम लघु ब्रह्माण्ड रचकर प्रकृति को वशीभूत करते है। हवा की दिशा हमारे भीतर के भावों को घनीभुत करके प्रेम का रास्ता साफ कर देती है।
वो पंछी देखो, कितना खूबसूरत हैं। देखो तो, हवा की दिशा में।"
#राधा_कृष्ण

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