'तुम्हें मनुष्य ही रहना था। जन्म के तुरन्त बाद तुम्हारा रोना, असल में मनुष्य होने का सन्ताप था। और फिर जीवन भर तुमने देवता बनने का प्रयत्न किया। क्या हाँसिल हुआ, तुम बड़े देवताओं के हाथों ठगे गए और छोटे मनुष्यों के पैरों तले कुचले गए। अकेले में तुम्हारे द्वारा बहाए गए सारे आँसू, तुम्हे यकीन दिलाना चाह रहे थे कि अभी भी वक्त है मनुष्य होने की तरफ लौट जाने का। मगर तुम्हे देवता बनना था।
मनुष्य से देवत्व की यह यात्रा तुम्हे खारिज करती गई सीढ़ी दर सीढ़ी। स्वयम्भूत देवता बन जाओगे तो खुद को अकेला पाओगें, जैसा की तुम अक्सर पाते हो। याद रखों मनुष्य कभी अकेला नही होता, उसके सुख रास्ते बांटते है और दुःख पेड़ पीते हैं। वह कभी अकेला नही होता।
देवता होना अपराध है। क्योंकि हर गलती पर देवता खुद को माफ़ नही करते, रात में अपनी पीठ को चाबुक से उधेड़ना होता है। मनुष्य तो क्षमा ले और दे कर नींद कमा लाता है हर रात।
एक बात यह भी, तुम मनुष्य होने का आनंद नही समझते हो। एक काम करो, अपनी गलती पर हँसो, अपनी अच्छाई पर व्यंग्य कसो। फिर देखो तुम्हारा होना कितना मुकम्मल हो जाता है। बुद्ध ने कहा मैं मनुष्य हूँ, समझ जाना था तुम्हे संकेत।
देवता होना मरने से इंकार करना है। सोच कर देखो, तुम कभी भी मर सकते हो क्योंकि मनुष्य हो। फिर न सन्ताप रहेगा, न दुःख , न विषाद। तुम मनुष्य होंगे तो वर्तमान को जी लेने का अर्थ समझोगे फिर।
उतर जाओ सिंहासन से, उतार दो मुकुट। फिरो लोगो में, जंगल में, पहाड़ पर। आंसू पोंछो अपने जैसे लोगो के उनका कान बनकर।
देवत्व ने तुम्हे धोखा दिया है। मनुष्य होना ईमानदारी है। '
'सुनो'
Saturday 19 November 2016
तुम्हे मनुष्य होना है
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